10-12-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

पुराने खाते की समाप्ति की निशानी

कमल पुष्प सम बनाने वाले बाप दादा बोले –

आज बापदादा साकार तन का आधार ले साकार दुनिया में, साकार रूपधारी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। वर्तमान समय की हलचल की दुनिया अर्थात् दुःख के वातावरण वाली दुनिया में बापदादा अपने अचल अडोल बच्चों को देख रहे हैं। हलचल में रहते न्यारे और बाप के प्यारे कमल पुष्पों को देख रहे हैं। भय के वातावरण में रहते निर्भय, शक्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। इस विश्व के परिवर्तक बेफिकर बादशाहों को देख रहे हैं। ऐसे बेफिकर बादशाह हो जो चारों ओर के फिकरात के वायुमण्डल का प्रभाव अंश मात्र भी नहीं पड़ सकता है। वर्तमान समय विश्व में मैजारिटी आत्माओं में भय और चिन्ता यह दोनों ही विशेष सभी में प्रवेश हैं। लेकिन जितने ही वह फिकर में हैं, चिंता में हैं उतने ही आप शुभ चिन्तक हो। चिन्ता बदल शुभ चिन्तक के भावना स्वरूप बन गये हो। भयभीत के बजाए सुख के गीत गा रहे हो। इतना परिवर्तन अनुभव करते हो ना! सदा शुभ चिन्तक बन शुभ भावना, शुभ कामना की मानसिक सेवा से भी सभी को सुख-शान्ति की अंचली देने वाले हो ना! अकाले मृत्यु वाली आत्माओं को, अकाल मूर्त बन शान्ति और शक्ति का सहयोग देने वाले हो ना! क्योंकि वर्तमान समय सीजन ही अकाले मृत्यु की है। जैसे वायु का, समुद्र का तूफान अचानक लगता है, ऐसे यह अकाल मृत्यु का भी तूफान अचानक और तेजी से एक साथ अनेकों को ले जाता है। यह अकाले मृत्यु का तूफान अभी तो शुरू हुआ है। विशेष भारत में सिविल वार और प्राकृतिक आपदायें ये ही हर कल्प परिवर्तन के निमित्त बनते हैं। विदेश की रूप रेखा अलग प्रकार की है। लेकिन भारत में यही दोनों बातें विशेष निमित्त बनती हैं। और दोनों की रिहर्सल देख रहे हो। दोनों ही साथ-साथ अपना पार्ट बजा रहे हैं।

बच्चों ने पूछा कि एक ही समय इकट्ठा मृत्यु कैसे और क्यों होता? इसका कारण है। यह तो जानते हो और अनुभव करते हो कि अब सम्पन्न होने का समय समीप आ रहा है। सभी आत्माओं का, द्वापरयुग वा कलियुग से किए हुए विकर्मों वा पापों का खाता जो भी रहा हुआ है वह अभी पूरा ही समाप्त होना है। क्योंकि सभी को अब वापस घर जाना है। द्वापर से किये हुए कर्म वा विकर्म दोनों का फल अगर एक जन्म में समाप्त नहीं होता तो दूसरे जन्मों में भी चुक्तू का वा प्राप्ति का हिसाब चलता आता है। लेकिन अभी लास्ट समय है और पापों का हिसाब ज्यादा है। इसलिए अब जल्दी-जल्दी जन्म और जल्दी-जल्दी मृत्यु - इस सजा द्वारा अनेक आत्माओं का पुराना खाता खत्म हो रहा है। तो वर्तमान समय मृत्यु भी दर्दनाक और जन्म भी मैजारिटी का बहुत दुःख से हो रहा है। न सहज मृत्यु न सहज जन्म है। तो दर्दनाक मृत्यु और दुःखमय जन्म यह जल्दी हिसाब-किताब चुक्तू करने का साधन है। जैसे इस पुरानी दुनिया में चीटियाँ, चीटें, मच्छर आदि को मारने के लिए साधन अपनाये हुए हैं। उन साधनों द्वारा एक ही साथ चीटियाँ वा मच्छर वा अनेक प्रकार के कीटाणु इकट्ठे हो विनाश हो जाते हैं ना। ऐसे आज के समय मानव भी मच्छरों, चीटियों सदृश्य अकाले मृत्यु के वश हो रहे हैं। मानव और चींटियों में अन्तर ही नहीं रहा है। यह सब हिसाबकिताब और सदा के लिए समाप्त होने के कारण इकट्ठा अकाले मृत्यु का तूफान समय प्रति समय आ रहा है।

वैसे धर्मराजपुरी में भी सजाओं का पार्ट अन्त में नूँधा हुआ है। लेकिन वह सजायें सिर्फ आत्मा अपने आप भोगती और हिसाब-किताब चुक्तू करती है। लेकिन कर्मों के हिसाब अनेक प्रकार में भी विशेष तीन प्रकार के हैं - एक हैं आत्मा को अपने आप भोगने वाले हिसाब। जैसे - बीमारियाँ। अपने आप ही आत्मा तन के रोग द्वारा हिसाब चुक्तू करती है। ऐसे और भी दिमाग कमज़ोर होना वा किसी भी प्रकार की भूत प्रवेशता। ऐसे ऐसे प्रकार की सजाओं द्वारा आत्मा स्वयं हिसाब-किताब भोगती है। दूसरा हिसाब है - सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा दुःख की प्राप्ति। यह तो समझ सकते हो ना कि कैसे है! और तीसरा है - प्राकृतिक आपदाओं द्वारा हिसाब-किताब चुक्तू होना। तीनों प्रकार के आधार से हिसाब-किताब चुक्तू हो रहे हैं। तो धर्मराजपुरी में सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा हिसाब वा प्राकृतिक आपदाओं द्वारा हिसाब-किताब चुक्तू नहीं होगा। वह यहाँ साकार सृष्टि में होगा। सारे पुराने खाते सभी के खत्म होने ही हैं। इसलिए यह हिसाब-किताब चुक्तू की मशीनरी अब तीव्रगति से चलनी ही है। विश्व में यह सब होना ही है। समझा! यह है कर्मों की गति का हिसाब-किताब। अब अपने आप को चेक करो - कि मुझ ब्राह्मण आत्मा का तीव्रगति के तीव्र पुरूषार्थ द्वारा सब पुराने हिसाब-किताब चुक्तू हुए हैं वा अभी भी कुछ बोझ रहा हुआ है?

पुराना खाता अभी कुछ रहा हुआ है वा समाप्त हो गया है? इसकी विशेष निशानी जानते हो? श्रेष्ठ परिवर्तन में वा श्रेष्ठ कर्म करने में कोई भी अपना स्वभाव-संस्कार विघ्न डालता है वा जितना चाहते हैं, जितना सोचते हैं उतना नहीं कर पाते हैं, और यही बोल निकलते वा संकल्प मन में चलते कि न चाहते भी पता नहीं क्यों हो जाता है। पता नहीं क्या हो जाता है? वा स्वयं की चाहना श्रेष्ठ होते, हिम्मत हुल्लास होते भी परवश अनुभव करते हैं, कहते हैं ऐसा करना तो नहीं था, सोचा नहीं था लेकिन हो गया। इसको कहा जाता है स्वयं के पुराने स्वभाव-संस्कार के परवश। वा किसी संगदोष के परवश वा किसी वायुमण्डल वायब्रेशन के परवश। यह तीनों प्रकार के परवश स्थितियाँ होती हैं तो न चाहते हुए होना, सोचते हुए न होना वा परवश बन सफलता को प्राप्त न करना - यह निशानी है पिछले पुराने खाते के बोझ की। इन निशानियों द्वारा अपने आपको चेक करो - किसी भी प्रकार का बोझ उड़ती कला के अनुभव से नीचे तो नहीं ले आता। हिसाब चुक्तू अर्थात् हर प्राप्ति के अनुभवों में उड़ती कला। कब-कब प्राप्ति है। कब है तो अब रहा हुआ है। तो इसी विधि से अपने आपको चेक करो। दुःखमय दुनिया में तो दुःख की घटनाओं के पहाड़ फटने ही हैं। ऐसे समय पर सेफ्टी का साधन है ही - ‘बाप की छत्रछाया’। छत्रछाया तो है ही ना! अच्छा –

मिलन मेला मनाने सब आये हैं। यही मिलन मेला कितनी भी दर्दनाक सीन हो लेकिन मेला है तो यह खेल लगेगा। भयभीत नहीं होंगे। मिलन के गीत गाते रहेंगे। खुशी में नाचेंगे। औरों को भी साहस का सहयोग देंगे। स्थूल नाचना नहीं, यह खुशी का नाचना है। मेला सदा मनाते रहते हो ना! रहते ही मिलन मेले में हो। फिर भी मधुबन के मेले में आये हो, बापदादा भी ऐसे मेला मनाने वाले बच्चों को देख हर्षित होते हैं। मधुबन के शृंगार मधुबन में पहुँच गये हैं।

अच्छा- ऐसे सदा स्वयं के सर्व हिसाब-विताब चुक्तू कर औरों के भी हिसाब-किताब चुक्तू कराने की शक्ति स्वरूप आत्माओं को, सदा दुःख दर्दनाक वायुमण्डल में रहते हुए न्यारे और बाप के प्यारे रहने वाले रूहानी कमल पुष्पों को, सर्व आत्माओं प्रति शुभ-चिन्तक रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

टीचर्स बहनों से :- सेवाधारी हैं, टीचर्स नहीं। सेवा में त्याग, तपस्या समाई हुई है। सेवाधारी बनना माना खान के अधिकारी बनना। सेवा ऐसी चीज़ है जिससे हर सेकण्ड में भरपूर ही भरपूर। इतने भरपूर हो जाते जो आधा कल्प खाते ही रहेंगे। मेहनत की जरूरत नहीं - ऐसे सेवाधारी। वह भी रूहानी सेवाधारी - रूह की स्थिति में स्थित हो रूह की सेवा करने वाले इसको कहते हैं रूहानी सेवाधारी। ऐसे रूहानी सेवाधारियों को बापदादा सदा ‘रूहानी गुलाब’ का टाइटल देते हैं। तो सभी रूहानी गुलाब हो जो कभी भी मुरझाने वाले नहीं! सदा अपनी रूहानियत की खुशबू से सभी को रिफ्रेश करने वाले।

2. सेवाधारी बनना भी बहुत श्रेष्ठ भाग्य है। सेवाधारी अर्थात् बाप समान। जैसे बाप सेवाधारी है वैसे आप भी निमित्त सेवाधारी हैं। बाप बेहद का शिक्षक है आप भी निमित्त शिक्षक हो। तो बाप समान बनने का भाग्य प्राप्त है। सदा इसी श्रेष्ठ भाग्य द्वारा औरों को भी अविनाशी भाग्य का वरदान दिलाते रहो। सारे विश्व में ऐसा श्रेष्ठ भाग्य बहुत थोड़ी आत्माओं का है। इस विशेष भाग्य को स्मृति में रखते समर्थ बन समर्थ बनाते रहो। उड़ाते रहो। सदा स्व को आगे बढ़ाते औरों को भी आगे बढ़ाओ। अच्छा –